अपने पिछले articles में मैने
सबसे पहले प्यार फिर गुस्सा के बारे में
लिखा था, मेरे पिछले दोनो article इन्ही
हाइलाइटेड शब्दों प्यार, गुस्सा पर क्लिक
करके पढ़ सकते है। आज मैंने अपने इस article में यकीन/विश्वास (Faith) के बारे में
लिखने की कोशिश की है। क्योंकि बिना विश्वास के प्यार ही क्या किसी रिश्ते की
इमारत नहीं खड़ी हो सकती। प्यार, दोस्ती या किसी भी रिश्ते में
विश्वास एक इमारत की नींव की तरह होता है। विश्वास की नींव के बिना किसी भी
रिश्ते की इमारत अधिक देर तक नहीं खड़ी हो सकती।
आप मेरे इस article को पढ़ने के बाद यही सोचेंगे कि ये भी कोई बात है लिखने वाली, लेकिन आज मैं पूरी तरह से स्वतन्त्रता पूर्वक कुछ दिनों से अपने मन में आ रहे विचारों को लिखना चाहता था सो लिख दिया। अब आप लोगों को जैसा भी लगे अपनी राय खुलकर दे सकते हैं क्योंकि सबके विचार अलग अलग होते है और ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।
यूँ तो हर व्यक्ति एक “प्रेमी” होता है क्योंकि प्रत्येक
व्यक्ति किसी न किसी चीज से, इंसान से, जीव-जंतु से, भगवान से या प्रकृति से प्रेम
करता है और जो “प्रेम” करता है वो कवि अपने आप ही बन
जाता है। तो आइये आज मैं “व्यक्ति” मन और “कवि” मन की उथल–पुथल और संवेदनशीलता को अपने
शब्दों में उतारने की कोशिश करता हूँ। ये कोशिश सफल है या असफल ये तो पूरा लेख
पढ़कर आप ही तय करेंगे।
कभी-कभी सोचता हूँ कि जिस व्यक्ति के पास शोहरत, धन-दौलत, स्वास्थ्य, बहुमुखी व्यक्तित्व सब कुछ
होता है वो व्यक्ति बहुत सुखी होता है लेकिन जब मैंने जिन्दगी की हकीकत को नजदीक
से देखा तो समझ आया कि ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है। इन सारी चीजों के अलावा प्यार
जिन्दगी का एक अहम् हिस्सा है प्यार की परिभाषा और अंत पर रिसर्च किया तो पाया कि
बड़े-बड़े कवियों ने अपनी रचनाओं में इसकी कई परिभाषाएं दे डाली है मैंने भी अपने
पिछले article में प्यार की अपने अनुसार एक परिभाषा लिखने की कोशिश की। जहाँ तक प्यार का सवाल है
जिसके भरोसे पूरी कायनात टिकी है उसका असर अगर इस दुनियां के हर शख्स पर हो जाए और
जुदाई हिस्से में ना आये तो प्यार की परिभाषा ही बदल जाए। चलिए ये तो “मुंगेरी लाल के हसींन सपने” हैं जो कभी पूरे नहीं होंगे।
हकीकत की जमीं पर “विश्वास” और “प्यार” दोनों गहरे दोस्त हैं अगर “विश्वास” है तो “प्यार” है जैसे ही “विश्वास” दूर हुआ “प्यार” अपने आप दूर चला जाता है और
जब “प्यार” दूर जाता है तो अपने पीछे छोड़
जाता “जुदाई” नामक अपनी प्रेमिका को, जो “प्यार” का रोल बखूबी अदा करती है
क्योंकि “प्यार” का वास्तविक साथी “जुदाई” होती है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा
सकता,
इसे शब्दों में अभिव्यक्त कर
पाना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि
चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से
दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। प्यार को जिसने भी अपने अन्दर समाहित किया उसने
अपने मन की दुश्मनी, द्वेष, घृणा, नफरत को कहीं पीछे छोड़ दिया
और जिसने इसका स्वाद नहीं चखा वो अपने पीछे कडुआ और कसैला स्वाद छोड़ता रहा क्योंकि
बन्दूक की नोक पर कोई भी किसी को अपने पैर छूने पर मजबूर तो कर सकता है पर नतीजे
में सामने वाले के दिल में नफरत का बीज बोकर वो एक नयी कहानी की शुरुआत कर देता है
लेकिन प्यार भरी वाणी के बल पर अगर सम्मान लिया जाए तो वो वह आत्मिक संतोष की
अनुभूति कराता है, वैसे सोलह आने सत्य है कि “प्यार” द्वेष को समाप्त करता है। ये
सत्य है कि….प्यार निरंकार है, प्यार एक पूजा है, प्यार एक विस्वास है, प्यार जीवन का सत्य है, प्यार चाहत का दर्पण है, प्यार इबादत का एक अंग है, प्यार भगवान का एक रूप है, क्योंकि जब कोई किसी को प्यार करता है तो उसे खुदा मान लेता
है, प्यार जब निखरता है तो दुनिया बदल जाती है, प्यार जब परवान चढ़ता है तो
अमीर-गरीब उंच-नीच का भेद न जान पाता, प्यार जब सम्पूर्ण होता है तो समर्पण में बदल जाता है, प्यार जब अपने पे आता है तो पागलपन
की हद से गुजर जाता है, और प्यार जब बिखरता है तो आत्मा झुलस जाती है, प्यार में आहत होना या प्यार में आहत कर देना दोनों बातें
दिल को तकलीफ देती है।
प्यार के बिखरने का प्रायः सबसे मुख्य कारण
"विश्वास" ही होता है, बिना विश्वास के कोई रिश्ता पनपता नहीं। कभी कभी एक अच्छे रिश्ते
में भी लगातार झूठ बोलने से, बातें छुपाने से विश्वास की नींव कमजोर होने लगती है और समय रहते
यदि उसमें प्यार या confession (जो कुछ झूठ बोला या छिपाया को confess करके) द्वारा मरम्मत नहीं की गई तो ये नींव इतनी
ज्यादा भी कमजोर हो सकती है कि आपके प्यार दोस्ती या रिश्ते की इमारत का बोझ भी न
उठा पाए। कभी कभी हम बिना सामने वाले को अच्छे से जाने खुद से अनेक तरह की mentality बना लेते हैं, ये सोच लेते है कि सामने वाले
को सच जान कर या ये ऐसी इस बात को जानकर अच्छा नहीं लगेगा तो अभी झूठ का ही सहारा
ले लेते हैं या इसे छुपा लेते है। पर ये तो प्यार दोस्ती या किसी भी रिश्ते के लिए
सबसे ज्यादा गलत है। इसका मतलब तो ये हुआ कि न तो आपको सामने वाले पर विश्वास है
ना खुद के रिश्ते पर। मैं यह नहीं कहता कि आपके बताने पर सामने वाला गुस्सा बिल्कुल भी नहीं होगा, सम्भव है कि गुस्सा होगा वो बातें जानकर किन्तु
क्षणिक। गुस्सा खत्म होने पर उसे अवश्य ही यह एहसास होगा कि रिश्ते में कुछ भी झूठ
नहीं है न ही कुछ छुपाया जा रहा है। जैसा कि पिछले article में लिखा था कि प्यार का रिश्ता आईना जैसा साफ होना
चाहिए, बीच में कोई पर्दा, दीवार न हो। जब रिश्ता आईने जैसा साफ होगा
तब विश्वास किसी भी स्थिति में कमजोर नही होगा। कुछ लोगों के अनुसार, रिश्ते में हर वक्त एक एक बात
अपने पार्टनर को बताना जरूरी नहीं होता, और कुछ पूछने पर ना बताना या छुपाना भी गलत नहीं
होता। अगर ऐसा
उचित भी है आपको नही पसंद हर बात बताना तो मत बताइए किन्तु यदि किसी परिस्थिति में
कुछ पूछ लिया गया तो उस समय तो उसका जवाब देना चाहिए, सम्भवतः यह तो उनके अनुसार भी
गलत नहीं होना चाहिए।
कभी कभी किसी प्रकार की बात पूछे जाने पर ही हम
सोचने लग जाते हैं कि हम पर doubt किया जा रहा है, अब पहले जैसा विश्वास, प्यार नहीं रहा और हर बात को इन्ही सब से जोड़कर इसी
नजरिये से देखने लग जाते हैं। अब अगर देखा जाये तो पूछने वाले के मन में तो कोई doubt नहीं रहा क्यूंकि जो उसके मन
में था उसने तो आपसे कह दिया, किन्तु doubts तो आपके मन
में आ गये कि हम पर doubt किया जा रहा है, अब पहले जैसा विश्वास, प्यार नहीं रहा वगैरह वगैरह.... और इन बातों
के आपके मन में आने के बाद उस रिश्ते में कितना सफर दोनों ने साथ तय किया है, सारी बातें, कसमें-वादे वो सब विस्मृत होने (भूलने) लग जाता है। बस यहीं से
रिश्ते में दूरियां आनी शुरू हो जाती हैं, चाह कर भी दिल से पहले जैसा प्यार नही आ पाता। हमें
उस समय शांत होकर सामने वाले द्वारा पूछी गयी बात का बिना गुस्सा किये सीधा जवाब
देना चाहिए, यदि आपको उन सवालों से गुस्सा
आ भी रहा है तो पूरे जवाब देने के बाद गुस्सा कर लीजिए, क्योंकि गुस्सा को तो बाहर
निकलना भी जरूरी है, नही तो मन मे भरा गुस्सा भी
रिश्ते में कड़वाहट ला सकता है। सवाल पूछने का सीधा मतलब यह नहीं होता कि हम पर doubt करके हमसे कुछ पूछा जा रहा
है। किसी भी रिश्ते में कुछ पूछना कोई doubt नहीं होता वो तो hurdles race के hurdles जैसे होता है, जिस प्रकार hurdles क्रॉस करने के बाद race में आगे ही बढ़ते है और मंजिल
उतनी ही करीब आती जाती है, ठीक उसी तरह कभी कभी कुछ
पूछने के बाद आपके द्वारा उसका सीधा जवाब देने के बाद रिश्ता और भी मजबूत ही होता
जाता है। हां लेकिन जरूरत से ज्यादा सवाल हर वक्त सवाल पूछना तो doubt ही कहा जाएगा और इससे भी
रिशतों में कड़वाहट आएगी और दूरियां बढेंगी।
लोग कहते हैं कि व्यक्ति समय
के साथ ढल जाते हैं उनको प्यार करने और अपनी feelings को जाहिर करने का समय नहीं मिलता तो मैं इस बात को
सिरे से खारिज करता हूँ मेरा मानना है कि कुछ लोगों को छोड़कर सारे व्यक्ति अपने
दिल में “प्यार” महफूज रखते हैं, हाँ ये बात और है कि वो जिससे
प्यार करते उससे खुलकर जाहिर कर दे या फिर दिल में दबा रहने दें जीवन भर के लिए एक
टीस के साथ कि काश! अपने दिल की बात समय रहते कह दी होती।
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि अगर ऐसा नहीं है तो फिर
क्या है? एक शायर, एक कवि के भीतर लिखते समय वो
कौन से अन्य पहलू सक्रिय हो जाते हैं जिससे एक सफल कविता, गीत और गजल की रचना होती है।
दर्द भरी गजलें हों या सीख देतीं कवितायें हों या मस्ती भरे गीत हों। ये अच्छे और
दिल को छू लेने वाले शब्दों और धुन को संभालती हुई इनकी दुनिया इतनी बड़ी और हसीन
बन चुकी है कि उसमें डूब कर खो जाना खुद के लिए प्यार की कायनात पाने जैसा ही है।
जहां “प्यार” सिर्फ प्यार नहीं और “दर्द” सिर्फ दर्द नहीं है, जिसका कोई अंत नहीं…….
Deepraj Sengar |
Well said Depraj ji everything is 100 percent right
ReplyDeleteअदभुत, अविश्वाशनिय, सुंदर विचार
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ReplyDeletevery good
ReplyDeletethank you
Kya bhai bahot solid experience h
ReplyDeleteanubhav bolta hai bhai, dikh rha hai
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